Sunday 22 May 2016

उन्हें सामने पा घबराता क्यूँ है

उन्हें सामने पा घबराता क्यूँ है
नज़र को बोलने दे शर्माना क्यूँ है

दिल-ए-हाल भेजना था पर खाली कागज़ भेज दिया
सब कुछ तो पता है उन्हें, फिर लिखना क्यूँ है

आना था उन्हें इस शाम भी मिलने
जब मालूम है फिज़ा हमें, फिर इंतज़ार में बरसना क्यूँ है

सुबह है, और पंछियों का चहकना शुरू है
जो सोये नहीं उन्हें जागना क्यूँ है

दो गीत, चार कविता और कुछ ग़ज़ल ही तो बची हैं
बाज़ार की ज़रुरत में बेचना क्यूँ है

याद है, तुम्हारी ग़ज़ल-सी, कमल-सी मुस्कराहट
जो दिल में महक बसी हो, तो भूलना क्यूँ है

... जो दिल में महक बसी हो, तो भूलना क्यूँ है

Wednesday 18 May 2016

तुम अपनों को कब तक ग़ैरों में गिनोगे

तुम अपनों को कब तक ग़ैरों में गिनोगे
वक़्त आने दो पैरों में पड़ोगे

मेरे नाम पर कब तक धुल फेकोगे
मौका आने दो तुम फूल फेंकोगे

आज़ है ये, कल का पता नहीं
कल मेरा नाम इज्ज़त से बोलोगे

दुश्मनी बेरहमी, खौफ़ बोती हैं
खौफ़ से कबतक ख़ुद को भरोगे

दहशत-दरिंदगी-साजिश होसला नहीं देती
ए ख़ुदा के बन्दे कब ख़ुदा से डरोगे

ना जाइए दूर, करीबी बनाए रखिये

ना जाइए दूर, करीबी बनाए रखिये
थोड़ी देर और मुझमे समाए रहिये

ये हसीं रात फिर हो ना हो
बरसती चाँदनी में बस नहाते रहिये

बगेर कुछ बोले यूँ ही बैठे रहो
निगाहों से सुनते-सुनाते रहिये

ना इश्क, ना प्रेम, न मोहब्बत
बगेर नाम यूँ ही बुलाते रहिये

कल फिर मिलने को कौन कहता है
आज़ का दीप जलाते रहिये

सुबह-दोपहर-शाम होने दो
हमे बस रात भर जगाते रहिये...हमे बस रात भर जगाते रहिये |