Wednesday 18 May 2016

तुम अपनों को कब तक ग़ैरों में गिनोगे

तुम अपनों को कब तक ग़ैरों में गिनोगे
वक़्त आने दो पैरों में पड़ोगे

मेरे नाम पर कब तक धुल फेकोगे
मौका आने दो तुम फूल फेंकोगे

आज़ है ये, कल का पता नहीं
कल मेरा नाम इज्ज़त से बोलोगे

दुश्मनी बेरहमी, खौफ़ बोती हैं
खौफ़ से कबतक ख़ुद को भरोगे

दहशत-दरिंदगी-साजिश होसला नहीं देती
ए ख़ुदा के बन्दे कब ख़ुदा से डरोगे

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