Wednesday 20 May 2015

याद आते हैं वो आँगन, गाँव के चौपाल सारे



याद आते हैं वो आँगन, गाँव के चौपाल सारे
बचपन जहाँ हमने गुज़ारा याद हैं वो साल सारे
बम्बई हो या लखनऊ शहर, गंगा हो या पतली नहर
चेन्नई हो या दिल्ली, याद है भोपाल प्यारे

सुन यहाँ कोलाहल कहाँ है
खेत हैं पर हल कहाँ है
चीखता है मौन मुझपे
आज है तू कल कहाँ है
मंदिरों में घंटियाँ पर आरती का सुर कहाँ है
ना हिन्द की भाषा यहाँ है, जय-भारती का सुर कहाँ है

सुस्त-सा बाज़ार है
ना सदर सा यार है
अब यहाँ मैं क्या खरीदूं
सब बिका बाज़ार है

रंग है पर होली नहीं है
दोस्त हैं पर टोली नहीं है
यूँ तो ज़माने की है चकमक
क्या ईद वो दिवाली नहीं हैं

मम्मी नहीं, ना पापा यहाँ पे
भैया नहीं, ना आपा यहाँ पे
बूँद को बादल ने छोड़ा
जो देश को नापा यहाँ से... जो देश को नापा यहाँ से

Saturday 2 May 2015

आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार



आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार
ऊँचे-ऊँचे पर्वत हिलते और हिलता जीवन आधार
बड़े-बड़े गुम्बज के नीचे हिलते पशुपतिनाथ
जीवन का संचन था जिनसे खींचे उसने हाथ
बिखरा है घर-घर का कोना, बिखरा है बाज़ार
आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार

खाने को तरसे हैं बालक, प्यासी उनकी प्यास
और माँएँ बच्चे को थामे ऐसी देखि लाश
जन-जन का जीवन सूना, सूना सारा देश
और वे मांगे आशाओं से दे-दे हमको भेष
ऐसे-वैसे कई कई देखे विपदा के प्रकार
आया कम्पन, धरती काँपी और काँपा सारा संसार