Sunday 8 March 2015

कुछ दिन मनोरम होते हैं

कुछ दिन मनोरम होते हैं और किसी दिन को हम मनोरम बनाते हैं
हमारा मुस्कुराना, गुदगुदाना उसी अनुपात में आता है, जितना जीने की आस और संसार की रास से रस निकलता है

कल कोई आपके पास था - आज़ नहीं है तो मन अशांत होता है , विछिप्त है, उससे मिलने को व्याकुल है
पर क्या ये व्याकुलता हमारे जीने की शैली में कोई परिवर्तन लाती है - भला क्या दर्शाती है ?
और फिर से इसका उत्तर जीवन की परिस्थितियों में छुपा है
संसार परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है और हमारे सदुपाय जीवन को तिरस्कृत करते हैं, पुरस्कृत करते हैं


हमारी प्रतिबद्धता हमारे प्रयासों को पृथक बनाती है, अथक बनाती है
क्या अवशेष है आज़ या क्या विशेष है मेरे पास, ये तबतक महत्वहीन है जबतक जीवन में व्याकुलता की अनुभूति ना हो
जीवन में हारों की भभूती - जीतने की लालसा लाती है, आशा और अभिलाषा को सजाती है
सहर्ष, सहज, सरल और सज़ल रहने की प्रेरणा दिखाती है, जीने का सदमार्ग बताती है

हाँ चलने के रास्ते अलग होंगे, कस्मे और वादे भी अलग हो सकते हैं क्यूंकि कुछ पाने के तरीके अनेक हैं
और चलते रहने पर कई आयाम आते हैं, शायद आज का दिन भी उनमे से ही एक है
अभिवादन करता हूँ आपके प्यार को
निश्चिततः आपकी शुभकामनाएँ मनोरम और प्रेरक है

खेत और खलिहान हरे थे

हमारे किसानों को इस बेमौसम बरसात से काफी नुकसान हो गया

खेत और खलिहान हरे थे
कृषकों की आशा से लदे थे
अमृत-सी बूंदे थी लगती वो
हो बिन मौसम तो फसल बहे रे


अब बचपन में गेहूं है रोये
ज्वार-बाज़रा मिटटी में सोये
ये बारिश थी या विपदा की बूंदे
बता ज़रा अब क्या हम बोये...बता ज़रा अब क्या हम बोये