Thursday 23 April 2015

मैं रो रहा हूँ तुम सो रहे हो



मैं रो रहा हूँ तुम सो रहे हो
मैं खो रहा हूँ तुम सो रहे हो
तुम हो जो नेता बन के प्रणेता
चुनावी समर में ... मैं था चहेता

मिथ्या नहीं है मेरी व्याथा ये
सुन तो ज़रा लो मेरी कथा रे
की फसल अब नहीं है, है गम यही है
खाने को गेहूँ और मक्की नहीं है



बिफर-सा गया जो विफल अब हुआ मैं
फसल जो है बिखरी, मसल-सा गया मैं
अब बीजों की ख्वाहिश मीलों नहीं है
एकड़ में दाना एक कीलो नहीं है

ए मेघा तो ऊपर से काहे को गरज़ा
हैं दो मुन्नी और मुन्ना और सर पे है कर्ज़ा
है बीमार माई और बाबा है बूढा
परसों ज़ला था शायद ये चूल्हा

ना मेरी धोती है कोरी, ना सीना ज़रूरी
पर ऐसे भी जीना क्या जीना है थोड़ी
प्यारों माफ़ करना तुम कुछ राड़ करके
चलो मैं चला अब थक हार कर के
... चलो मैं चला अब थक हार कर के...