Sunday 8 March 2015

खेत और खलिहान हरे थे

हमारे किसानों को इस बेमौसम बरसात से काफी नुकसान हो गया

खेत और खलिहान हरे थे
कृषकों की आशा से लदे थे
अमृत-सी बूंदे थी लगती वो
हो बिन मौसम तो फसल बहे रे


अब बचपन में गेहूं है रोये
ज्वार-बाज़रा मिटटी में सोये
ये बारिश थी या विपदा की बूंदे
बता ज़रा अब क्या हम बोये...बता ज़रा अब क्या हम बोये

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