आईये आज फिर हिंदी दिवस मनाते हैं
और एक बार फिर हिंदी में काम करने का संकल्प दोहराते हैं
कोई बात नहीं अगली ही सुबह से भले हिंदी की अंग्रेजी बनाएं
पर फिर भी कम से कम आज तो शान से हिंदी भाषी कहलायें
याद रहे यही वो हिंदी है जिसमे कितने ही साहित्य गढ़े गए
मीरा, तुलसी, कबीर, सूर कितनों के दोहे पढ़े गए
यही परिचय है दिनकर, पंथ, महादेवी, जय-शंकर, हरिऔध और हरिवंश-सा
अब इसी हिंदी देश में ‘विश्वद्यालय’ पर है ‘यूनिवर्सिटी’ एक दंश-सा
आईये हिंदी अपनाएँ, हिंदी को पहने, समेटे ना अपने विचार
फैलाएं उसे, खिलखिलाएं अपनी बचपन की यादों में
और जरूर बच्चों को हिंदी सिखांयें
बस अपनी हिंदी को दिल से निभायें
इसे सिर्फ बाज़ारू बनने से रोकना है
आदर को तरसती ये बोली, सम्मान दिलवाएं...आदर को तरसती ये बोली, सम्मान दिलवाएं