Wednesday 22 October 2014

दीपों से है घर सज़ा, और सज़ा आकाश



दीपों से है घर सज़ा, और सज़ा आकाश
अँधियारे को दूर भगा, ज्योति और प्रकाश

रंग-बिरंगी चकमक करती, इम्पोर्टेड है लाइट
बीबी बोले सोना तो ले, फिर हो चाहे पॉकेट टाइट

नए नए मॉडल के देखो, डिजायनर हुए गणेश
दीप भूल गए मोम छा गया, बस लक्ष्मी करें प्रवेश

चायनीज चकरी मारे चक्कर, देसी व्यापारी फक्कर
अच्छे दिन के साए में, अब मोदी देवे टक्कर

बिखड़े से हैं ताश के पत्ते, और जुआ हुआ है आम
आज दिवाली बोलके, ऐसे-वैसे काम

फुलझरी है रंग-बिरंगी, अनार उड़ेले आग
रोकेट में जो दी चिंगारी, जल्दी ऊपर भाग
जल्दी ऊपर भाग की पीछे रस्सी पे रेल
सांप की गोली हो गई लम्बी, देखो कैसा खेल.... सांप की गोली हो गई लम्बी, देखो कैसा खेल

Sunday 14 September 2014

१४ सितम्बर – हिंदी दिवस


आईये आज फिर हिंदी दिवस मनाते हैं
और एक बार फिर हिंदी में काम करने का संकल्प दोहराते हैं
कोई बात नहीं अगली ही सुबह से भले हिंदी की अंग्रेजी बनाएं
पर फिर भी कम से कम आज तो शान से हिंदी भाषी कहलायें

याद रहे यही वो हिंदी है जिसमे कितने ही साहित्य गढ़े गए
मीरा, तुलसी, कबीर, सूर कितनों के दोहे पढ़े गए
यही परिचय है दिनकर, पंथ, महादेवी, जय-शंकर, हरिऔध और हरिवंश-सा
अब इसी हिंदी देश में विश्वद्यालय पर है यूनिवर्सिटी एक दंश-सा

आईये हिंदी अपनाएँ, हिंदी को पहने, समेटे ना अपने विचार
फैलाएं उसे, खिलखिलाएं अपनी बचपन की यादों में
और जरूर बच्चों को हिंदी सिखांयें
बस अपनी हिंदी को दिल से निभायें
इसे  सिर्फ बाज़ारू बनने से रोकना है
आदर को तरसती ये बोली, सम्मान दिलवाएं...आदर को तरसती ये बोली, सम्मान दिलवाएं

Friday 27 June 2014

रविवार


सातों दिन का राजा जो
बच्चों में भी प्यारा वो
आने वाला है रविवार
मज़े करें पूरा परिवार

आँख खुली सूरज का ज़ाला
नौ बजे अब चाय का प्याला
फिर बच्चों की हो फरमाइश
चलो पार्क है झूले की ख्वाइश

अलसाया अलसाया है तन
बिस्तर-टीवी से चिपका मन
कह दे नव्या मम्मी से जाकर
चाय-पकोड़े ला दे दें आकर

है छुट्टी सो इतराती आज़
ला सब्जी, ला आलू प्याज़
दिन भर बस बीबी का रौब
इससे अच्छा बॉस का खौफ़!

पर अच्छी लगती है ये सज़ा
इस दिन का है अपना ही मज़ा
कल दफ्तर है सोमवार
मन इंतज़ार कब रविवार.. मन इंतज़ार फिर रविवार

Thursday 22 May 2014

आया जीवन फिर से घर में जीने को संसार

आया जीवन फिर से घर में जीने को संसार,
माँ की ममता को पाने और पाने आकार

नन्हा मोती पाया जिसने ‘मोनी’ उसकी मैया
और ‘नव्या’ भी खेल रही, प्यारा उसका भैया

जीवन का है रंग यही, सुख-दुःख दोनों तीर
तुझमे ही मौला को देखूँ, तुझमें देखूँ पीर

Friday 2 May 2014

प्रजातंत्र का पर्व

प्रजातंत्र का दौर है, प्रजातंत्र का पर्व
नेता आगे चल रहे, पीछे देश का गर्व

नोट-वोट का खेल कर, खेलें टेडी चाल
डाकू नेता बन गए, जनता भई कंगाल

अडवाणी-रथ रूठ गौ, मुरली अपनी तान
लहर बनावे आपनी, मोदी मारे बाण

माँ-बेटे की जीत पर, बहन भी आई संग
हाथ भी तरसे साथ को, दिग्गी रासरंग

वाम रो गए ममता से, हुआ तीसरा फेल
PM बनने की रेस में, खूब चला ये खेल

माया का बहुरूप है, मुलायम हो रहे सख्त
लालू आया जेल से, ललचाएं देखि तख़्त

नाक में दम है कर रही टोपी केजरीवाल
झाड़ू सब पर चल रही, सादेपन का जाल

संविधान को कौन संभाले, रही न अब वो बात
जीत रहे खरगोश अब और कछुए खाते मात

वोटरलिस्ट में अटक गई अब तेरी पहचान
जात-पात और धर्म में, बाँट दियो इंसान... जात-पात और धर्म में, बाँट दियो इंसान

Monday 28 April 2014

चुनाव

देखो-देखो कौन है ये, टोपी सर पर डाले
'हाथ', 'कमल' कोई और ले गया 'झाड़ू' तेरे पाले

कौन यहाँ नेता है मेरा, देखें चलकर रैली
सारे चक-चक चमक रहें हैं, किसकी चादर मैली ?

महँगी बिजली-पानी और महँगी है रोटी-तरकारी
बेरोज़गारी-लाचारी में, पिसती  ये जनता बेचारी

बेचैन हो रही भारत माता सुनकर इनके वादे
सस्ती भाषा बोल रहे सब, PM बनने के दावे

गर आँखों पर हाथ रखोगे फिर तो दुनिया अंधियारी है
सजग बनें और वोट करें, अब नव-युग की तैयारी है....अब नव-युग की तैयारी है

Sunday 6 April 2014

मैंने देखा है एक दीपक, जो कभी प्रकाशमान था

मैंने देखा है एक दीपक, जो कभी प्रकाशमान था
किंतू आज एक तश्वीर के सामने विराजमान है
कभी उस दीपक की छठा याद की व्याथा दिखाती है
तो कभी अपने बुझ जाने पर गरुड़ कथा सुनाती है

माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी, बच्चे सभी तो हैं
दिनों-दिन बीत जाने पर भी, लगता है अभी तो हैं
हाँ, सच्ची धागे कच्चे ही होते हैं
धागे में उलझन, सुलझन, गाँठ तीनो ही होती हैं
पर खींचाव किसी रुकाव को बोती हैं

हे ईश्वर तेरे धागे की कशमकश से
इंसान घबराता है, यम मुस्कुराता है
मानो वो हँसाता कम और बस रुलाता है
मानो वो हँसाता कम और बस रुलाता है