Wednesday 11 December 2013

बेटी प्यारी पाँच साल की देख के मन मुस्काए


बेटी प्यारी पाँच साल की देख के मन मुस्काए
उसकी रोचक बातें सुनकर, दिल बच्चा बन जाए
ठुमक-ठुमक जैसे वो मटके
और चिड़िया-सी चर्फर चहके
मुझको याद दिलाता है, मेरा बचपन पाने को
मचल उठती हूँ, जीवन जंजाल हटाने को
काश, जो मैं भी बच्ची होती
पापा संग पलती होती और मम्मी संग जाती स्कूल
कोने वाले पार्क के झूले में खूब तैरती, मानो सबकुछ भूल
और भैया संग जाती फिर से नुक्कड़ वाली दूकान
ले आती कुछ पैसों में भर-भर के सामान
अब यादों का तराना और छिरने दो
याद करने दो, बस मुझे बहने दो

हाँ याद आती है बचपन से बाईस की वो सारी बातें
चाहे वो भाई का साईकल से गिरना, या बोर्ड परीक्षा की रातें
पापा का शाम को दफ्तर से घर लौटना
मम्मी के साथ हमारा भी राह ताकना
क्यूँकि कुछ बिस्किट और चाकलेट लाते थे
हम सारे भाई-बहन मिल बैठ की खाते थे
 
और भी कई बातें याद आती हैं, जो दिल को काटती हैं
वो पड़ोस वाली लीलावती अम्मा की पापा को नसीहत
की ये बेटियाँ हैं, तेरे ऊपर फज़ीहत
याद हैं वो समाज की आहें, और पापा के मजबूत कन्धों को संभालती मम्मी की बाहें
 
याद है वो जीजा जी के पापा का चेहरा सादा
पर डोली उठते ही सोनाराम के गहनों का तगादा
एक पिता होने का मतलब एक पिता ही जानते हैं
और अगली साल भाई के कॉलेज दाखिले का वादा
ये देखो मेरी शादी के एल्बम की ये अगली तस्वीर
इस कोने में पापा रुमाल से अपना चेहरा पोछ रहे हैं
शायद रुमाल में कुछ आसूं हैं जिनसे समाज के नियम धो रहे हैं.... समाज के नियम धो रहे हैं

No comments:

Post a Comment