Tuesday 26 November 2013

सखी जरा तुम आ जाना

सखी जरा तुम आ जाना पर आके फिर बस मत जाना
आँगन के सूखे फूलों में तुम थोड़ी सुगंध बसा जाना

सुनो जरा खामोश है मौसम, और दिशाएँ सोई हैं
मेरे संग चौखट पे सारी रात ये रोई हैं
इस दूरी को क्या मैं नापूं, मानों प्यास और पनघट है
मेरे संग बस खत वो तेरे, सूखे गुलाब और करवट हैं
सुबह हुई सूरज है आया और लाया उम्मीदों का ताना
सखी जरा तुम आ जाना पर आके फिर बस मत जाना
आँगन के सूखे फूलों में तुम थोड़ी सुगंध बसा जाना...

तुम मेरे शब्दों की मंसा, गीतों में समाई हो
तुम मेरी राधा – सी मूरत, मीरा की चौपाई हो
इन बादलों का रिमझिम टपकना, मेरी तड़प की भावना है
है ये सावन या फिर आंसू, बस तेरे महक की कल्पना है
चाँदनी भी उतर रही है और मैनें भी छोड़ा गीत गाना
सखी जरा तुम आ जाना पर आके फिर बस मत जाना
आँगन के सूखे फूलों में तुम थोड़ी सुगंध बसा जाना

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