चल रहा पंथी गगन में गीत गाता
शून्य-सा नभ में भ्रमता-भ्रमाता
सांस चलती है पथिक चलना पड़ेगा
अब हार पर जीत का परचम उड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
देख तेरी इस मायूसी को
सूर्य ने चमकना भुलाया
नभ-चंद्र ने हँसना भुलाया
और भूली चांदनी भी खुद सजाना
मत बना पथिक इन्हें बैठ जाने का बहाना...
जीवन नदी है इसे बस बहना पड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
ये तो बस काले बादल का साया
मत ओढ़ पथिक तम की ये माया
डग डग डग-सा चलता चल
जैसे कल कल-सा बहता जल
कुछ दूर खड़ी बस तेरी छाया
अब तू गगन में ही उड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
हाँ सुना कभी, ‘ईश्वर कण-कण है’
पर मेरा मंदिर मेरा प्रण है
जीना भी क्या कोई रण है ?
पर रण में जीना ही तो प्रण है
हर मंच पे नवरंग के तू रंग भरेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा..... लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
शून्य-सा नभ में भ्रमता-भ्रमाता
सांस चलती है पथिक चलना पड़ेगा
अब हार पर जीत का परचम उड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
देख तेरी इस मायूसी को
सूर्य ने चमकना भुलाया
नभ-चंद्र ने हँसना भुलाया
और भूली चांदनी भी खुद सजाना
मत बना पथिक इन्हें बैठ जाने का बहाना...
जीवन नदी है इसे बस बहना पड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
ये तो बस काले बादल का साया
मत ओढ़ पथिक तम की ये माया
डग डग डग-सा चलता चल
जैसे कल कल-सा बहता जल
कुछ दूर खड़ी बस तेरी छाया
अब तू गगन में ही उड़ेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
हाँ सुना कभी, ‘ईश्वर कण-कण है’
पर मेरा मंदिर मेरा प्रण है
जीना भी क्या कोई रण है ?
पर रण में जीना ही तो प्रण है
हर मंच पे नवरंग के तू रंग भरेगा, लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा..... लक्ष्य है स्वीकार कहना पड़ेगा
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