पुरानी किताब और गुलाब की सूखी
पंखुरियाँ
मोर पंख में चिपकी मानों हर रंग
की परीयाँ
मैंने धीरे से उन्हें सहलाया,
थोड़ा पुचकारा
मंद – मंद
मुस्काके, आँखों के पानी से नहलाया
बोलो कभी तुम भी अपने सिरहाने रखी मेरी तस्वीर में नजरों को बोओगी
बोलो कभी तुम भी अपने सिरहाने रखी मेरी तस्वीर में नजरों को बोओगी
भला कब तक सूरज को बंद आँखों से
देखोगी...मैंने सुना है तुम कल आओगी.....
याद है वो कॉलेज का गलीचा
याद है वो आम का बगीचा
हाँ याद है वो नदी का किनारा
याद है वो मिलन का सवेरा
भला कब तक विरह बेला सजाओगी.....
मैंने सुना है तुम कल आओगी.....
हाँ उसी पहाड़ी, उसी पेड़ की छाँव
और गाँव की पनघट पे
मैंने सितारों को भी रोक रखा था
तुम्हारे स्वागत में
पर तुम चुपके से छू के चली गई
प्यार की बनावट में
भला कब तक मेरी छुअन को ना
धोओगी.... मैंने सुना है तुम कल आओगी.....
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