बरसों बीत गए यूं चलते
हमको यूं मज़बूत बनाते
क्या धूप-छाँव, कब बरसा सावन
हमको बस
करने को पावन
दिन-दिन
यूं ही बीत गए
विद्यालय हमको पहुँचाते
घिसा अंगोछा, फटी बनियान
पर मेरा कुर्ता सिलवाते
हाँ, हाँ बिलकुल वो पिता हैं मेरे
मेरी किस्मत रचने वाले
अम्बर-सी छत बने रहे,
जब भी छाए बादल काले
जीवन सारा कटा भागते
मुझको नर्म बिछौना लाते
याद जरा तुम कर लो वो पल
जो पंखा झलते थे सिरहाने
खाले-खाले एक और गिराई,
रोटी मीठी चटनी साथ
ठुमक-ठुमक चलना सिखलाया
थाम मेरे हाथों में हाथ
ठुमक-ठुमक चलना सिखलाया, थाम मेरे
हाथों में हाथ..............