Monday 24 September 2012

पिता


बरसों बीत गए यूं चलते
हमको यूं मज़बूत बनाते
क्या धूप-छाँव, कब बरसा सावन
हमको बस करने को पावन
दिन-दिन यूं ही बीत गए
विद्यालय हमको पहुँचाते
घिसा अंगोछा, फटी बनियान
पर मेरा कुर्ता सिलवाते

हाँ, हाँ बिलकुल वो पिता हैं मेरे
मेरी किस्मत रचने वाले
अम्बर-सी छत बने रहे,
जब भी छाए बादल काले
जीवन सारा कटा भागते
मुझको नर्म बिछौना लाते
याद जरा तुम कर लो वो पल
जो पंखा झलते थे सिरहाने 

खाले-खाले एक और गिराई,
रोटी मीठी चटनी साथ
ठुमक-ठुमक चलना सिखलाया
थाम मेरे हाथों में हाथ
ठुमक-ठुमक चलना सिखलाया, थाम मेरे हाथों में हाथ.............. 

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